सुने थे जितने हसीं नगमे , देखे थे जितने हसीं पल ,
यादें जिन्हें याद करके रोया करते थे हम ,
ना वो रहेंगी पास , ना ही होगा कोई आभास ,
मिटटी के इस जिस्म में जब ना रहेगी ये ज़िन्दगी .
किस हाल में कहाँ होंगे ,ये ना सोच सकते हैं अभी ,
ज़िन्दगी जो गुजर गई , वापिस ना ला पाएँगे वो कभी ,
ना ही पलों को थाम कर बता पाएँगे अपना एहसास ,
मिटटी के इस जिस्म में जब ना रहेगी ये ज़िन्दगी .
सोचते हैं की मेरे बाद क्या वैसे ही रहेंगे मेरे विचार ,
या बदल जाएँगे ये ,जैसे बदले थे लोग अपार ,
हमेशा साथ चलने वाला हमसफ़र भी ना होगा तब अपने पास ,
मिटटी के इस जिस्म में जब ना रहेगी ये ज़िन्दगी .
शुक्रगुजार हूँ मैं खुदा का ,जो मुझे ये दुनिया दिखाई उसने ,
वरना इन विचारों को कैसे जता सकता था मैं ,
तमन्ना है की लोग समझें , कितने कीमती हैं ये अल्फाज़ ,
मिटटी के इस जिस्म में जो पायी है उन ने ज़िन्दगी .