Sunday 25 September 2011

ये ज़िन्दगी ....

सुने  थे  जितने  हसीं  नगमे , देखे  थे  जितने  हसीं  पल  ,
यादें  जिन्हें  याद  करके  रोया  करते  थे  हम ,
ना   वो  रहेंगी  पास , ना  ही  होगा  कोई  आभास ,
मिटटी  के   इस  जिस्म  में  जब  ना  रहेगी  ये  ज़िन्दगी .

किस  हाल  में  कहाँ  होंगे ,ये  ना  सोच  सकते  हैं  अभी ,
ज़िन्दगी  जो  गुजर  गई , वापिस  ना  ला  पाएँगे  वो  कभी ,
ना  ही  पलों  को  थाम  कर  बता  पाएँगे  अपना  एहसास ,
मिटटी  के   इस  जिस्म  में  जब  ना  रहेगी  ये  ज़िन्दगी .

सोचते  हैं  की  मेरे  बाद  क्या  वैसे  ही  रहेंगे  मेरे  विचार ,
या  बदल  जाएँगे  ये ,जैसे  बदले  थे  लोग  अपार ,
हमेशा  साथ  चलने  वाला  हमसफ़र  भी  ना  होगा  तब  अपने  पास ,
मिटटी  के   इस  जिस्म  में  जब  ना  रहेगी  ये  ज़िन्दगी .

शुक्रगुजार  हूँ   मैं   खुदा  का ,जो  मुझे  ये  दुनिया  दिखाई  उसने ,
वरना  इन  विचारों  को  कैसे  जता  सकता  था  मैं  ,
तमन्ना   है  की  लोग  समझें , कितने   कीमती   हैं  ये  अल्फाज़ ,
मिटटी  के  इस  जिस्म  में  जो  पायी  है  उन  ने  ज़िन्दगी .

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